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Sunday, 29 January 2017

#SanjayLeelaBhansali #padmavati

#यहां_प्रताप_का_वतन_पला_है_आज़ादी_के_नारो_पे,
#कूद_पड़ी_थी_यहां_हज़ारों_पद्मिनियां_अंगारों_पे,
#बोल_रही_है_कण_कण_से_कुर्बानी_राजस्थान_की..."
भंसाली फिल्म मेकर है..आर्टिस्ट है..इसीलिए वो अपने तरीके से फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का इस्तेमाल करता है..बाकी जो उनसे असहमत हैं उनका फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का अपना तरीका है....हम सबके फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का सम्मान करते हैं.. करना भी चाहिए..
अब चूँकि पूरी फिल्म इंडस्ट्री भंसाली जी के समर्थन में उतर आयी है..तो हम बस इंडस्ट्री से इतनी रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि समर्थन सिर्फ बम्बई से नहीं बल्कि एक बार राजस्थान की सड़कों पे उतर के भी दिखाएं.. देश को भी पता चले कि आखिर माज़रा क्या है।
वैसे भी जब हम शौर्य और साहस के प्रतीक बाजीराव को इंटरवल के बाद देवदास बने देख सकते हैं तो हमको कुछ भी दिखाया जा सकता है..
रानी पद्मिनी, जिन्हें पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है, चित्तौड़ की रानी थी। रानी पद्मिनि के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थी।
रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई। अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी, लेकिन अपनी आन-बान पर आँच नहीं आने दी।
ईस्वी सन् १३०३ में चित्तौड़ के लूटने वाला अलाउद्दीन खिलजी था जो राजसी सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने के लिए लालयित था। उसने दर्पण में रानी की प्रतिबिंब देखा था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था। लेकिन कुलीन रानी ने लज्जा को बचाने के लिए जौहर करना बेहतर समझा।
अब इसी वीरांगना की वीरगाथा को अपने व्यावसायिक हीत के लिए संजय लीला भंसाली गलत तथ्यों के साथ इतिहास को तोड़ मडोड़कर लोगों के सामने परोसना चाहते हैं।
#SanjayLeelaBhansali #padmavati

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